प्रथम दृश्य
(पर्दा
उठता है। बाजार का दृश्य-कुछ लोग इधर-उधर आ-जा रहे हैं।)
एक बालक : (कंधे पै थैला,
हाथ में बुश) बूट पालिश! बूट पालिश!
(एक राहगीर से) बाबूजी! जूते चमका दूँ, शानदार
कर दूँगा
राहगीर : नहीं रे! परे हट ।
बालक : (बूट पकड़कर) आईना बना दूँगा जूतों को अपनी शकल देखकर फिर पैसा देना
बाबू जी ! सिर्फ दो रूपए ।
राहगीर: अरे
हट । जोंक की तरह चिपक जाता है। भाग। (राहगीर के पीछे बालक चला जाता है। दूसरी ओर
से एक हाकर (hawker) अखबारों का बण्डल लिए आता है ।)
हाकर : (अखबार हिलाते हुए) आज की ताज़ा खबर । भूकम्प से गिरे मकानों का नव
निर्माण। छात्राओं की फीस माफ! स्कूल के लड़कों ने डाकू पकड़ा। आज की ताज़ा खबरें!
(कुछ लोग अखबार खरीदने लगते हैं - दूसरी ओर से चायवाला बालक आता है। एक हाथ में
बाल्टी जिसमें कप रखे हैं - एक हाथ में केतली ।
चायवाला : चाय गरम! चाय गरम! चाय। (एक बालक अखबार पढ़ता
हुआ चलता-चलता चायवाले से टकरा जाता है । बाल्टी छिटककर गिरती है- दो-तीन कप बिखर
जाते हैं।)
चायवाला : अंधा है क्या! देखकर नहीं चलता। मेरे कप टूट गए।
बालक : चल, चल
फूट यहाँ से! पेंट खराब कर दिया और ऊपर से रोब जमा रहा है। (दोनों लड़ते झगड़ते
जाते हैं। दूसरी ओर से एक बूढ़ा अंधा भिखारी बैसाखी के सहारे आता है। कटोरे में
कुछ पकौड़ियाँ, अमरूद, रोटी के टुकड़े, रेजगारी
आदि हैं।)
भिखारी : बाबूजी! भूखा हूँ ! मेरा सब कुछ लुट गया!
भगवान तुम्हें खूब बरकत देगा। भगवान तुम्हारा भला करेगा।
एक बालक : (हाथ में किताबें) परे हट! इधर तो स्कूल की देर
हो रही हैं और यह सामने आ रहा है। हूँ? (जेब
में हाथ डाल कर पैसे निकाल,
गिनता है।) यहाँ तो पिक्चर के टिकट में
भी अठ्ठनी कम है! तू देगा?
(चला जाता है।)
भिखारी : बेटा! मैं अंधा हूँ। बेसहारा हूँ। मैं भला
तुम्हें क्या दे सकता हूँ। सबको देनेवाला तो वह नीली छतरीवाला है। (एक बालक साइकिल
पर आकर बूढ़े से टकरा जाता है। बूढ़ा गिर पड़ता है। लकड़ी और कटोरा दूर जा गिरता
है ।)
भिखारी : (चीखकर) हाय रे, मेरी टांग टूट गई रे? अब
क्या करूँ रे?
साइकिलवाला: (कपड़े झाड़कर साइकिल उठाता है) अंधा है क्या ? सामने आ गया ? इन भिखारियों ने नाक में दम कर रखा है, स्कूल की देर करवा देगा! परीक्षा का पहला दिन है। (साइकिल पर जाता है
।)
भिखारी : (पड़ा-पड़ा) हाय भगवान ! मेरी टांग टूट गई रे ।
अरे कोई मुझे उठाओ। कोई तो भला मानुष मुझे सड़क के किनारे बिठा दो रे ! ऐ लाला! ऐ
बाबू! मुझे सड़क के एक तरफ ले चलो रे? (एक
विद्यार्थी आता है हाथ में बस्ता )
विद्यार्थी : अरे ! क्या हो गया बूढ़े बाबा ? (टांग देखकर) अरे रे... चोट ज्यादा लगी है।
(कटोरे में पैसे- रोटी आदि डालकर देता है) लो बाबा! यह रहा तुम्हारा कटोरा। इसमें
सात रुपये हैं।
भिखारी : (कटोरा लेकर कराहता हुआ) जीते रहो बेटा ।
भगवान तुम्हें अच्छे नम्बर से उत्तीर्ण करे-मेरे राजा बाबू को, मुझ अंधे की लकड़ी कहाँ है? बेटे! मुझे सड़क के किनारे कहीं पेड़ के नीचे
बिठा दो, भला होगा तुम्हारा?
विद्यार्थी : (लकड़ी थमाकर) लो, यह रही लकड़ी। (स्कूल की घण्टी सुनाई देती है)
अरे! पहली घण्टी लग गई। आज परीक्षा का पहला ही दिन है। किन्तु... खैर ( बूढ़े से)
बाबा उठो । तुम्हें फूटपाथ पर बिठा दूँ। अरे तुम्हारे पाँव में तो गहरी चोट है -
खून बह रहा है । (कलाई की घड़ी देखकर सोचता हुआ स्वयं से) उधर परीक्षा का समय, इधर यह अंधा बाबा ? क्या करूँ..?
(अंतरात्मा में आवाज गूँजती है - इन्सान की सेवा सबसे पहला कर्तव्य
है, इन्सान की सेवा सबसे बड़ा धर्म है।)
विद्यार्थी: (बाबा से) चलो बाबा तुम्हें अस्पताल तक पहुँचा
दूँ । (विद्यार्थी सहारा देकर ले जाता है ।)
दूसरा दृश्य
(प्रधानाध्यापक कक्ष। प्रधानाध्यापक की तख्ती के पीछे प्रधानाध्यापक
जी कुछ लिखते हुए एक अध्यापक का आना।)
अध्यापक : सर! परीक्षा शुरू हो गई और देवेन्द्र सेन अभी
तक अनुपस्थित है।
प्रधानाध्यापक : क्या! देवेन्द्र! क्या बात हुई वह तो मेधावी
छात्र है। अरे भाई, किसी को स्कूटर लेकर भेजो, लेकिन ठहरो मेरे पास फोन नम्बर है। पहले पता कर
लेता हूँ। (फोन उठाते हैं) हलो। हलो। हलो हाँ मैं प्रधानाध्यापक बोल रहा हूँ। अरे
भाई, देवेन्द्र की परीक्षा शुरू हो गई है।
आज पहला दिन है। वह आया क्यों नहीं अभी तक? हैं? घर से निकले घण्टाभर हो गया? हाँ, परीक्षा
शुरू हुए दस मिनट से ज्यादा हो गए हैं। पता लगाओ भाई। वह तो प्रथम श्रेणी में
उत्तीर्ण होनेवालों में से है। (फोन रखकर उसे घर से निकले बहुत समय हो गया है। आ
जाना चाहिए। देखिए वह आ जाय तो मेरे पास भेजना। वैसे उसके साथवाले लड़के से मालूम
करो कहीं एक्सीडेण्ट-वेक्सीडेण्ट तो नहीं हो गया। (अध्यापक का जाना कुछ ही देर बाद
देवेन्द्र का हाँफते हुए आना ।)
देवेन्द्र: क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ, श्रीमान्।
प्रधानाचार्य : अरे ? देवेन्द्र
इतने लेट? कहाँ थे अब तक ?
देवेन्द्र: ( घबराया स्वर ) अस्पताल सर ?
प्रधानाचार्य: (कड़ककर) अस्पताल ? परीक्षा क्या वहाँ हो रही थी? और ये पेंट पर खून के धब्बे? कहीं गिर पड़े थे क्या?
देवेन्द्र: जी
नहीं। एक अंधे बूढ़े भिखारी को किसीने साइकिल की टक्कर मार दी। उसकी टांग ज्यादा
जख़्मी हो गई। वह सड़क के बीचोबीच पड़ा कराह रहा था। उसे तुरन्त इलाज की जरूरत
थी, इसलिए अस्पताल में भर्ती करवाकर आ रहा
हूँ। क्षमा चाहता हूँ सर!
प्रधानाध्यापक : शाबाश! यह जानते हुए भी कि परीक्षा का समय है, तुमने अपना कर्तव्य निभाया। इन्सान की जिन्दगी
इस परीक्षा से बहुत बड़ी और कीमती होती है। जाओ, परीक्षा में बैठो, कमरा
नम्बर चार में तुम्हारा रोल नंबर है । (देवेन्द्र जाता है। प्रधानाध्यापक फोन
उठाते हैं।
प्रधानाध्यापक: (फोन पर ) हलो। सेन साहब ? हाँ, देवेन्द्र
आ गया। रास्ते में किसी बूढ़े का एक्सीडेन्ट हो गया था, उसे अस्पताल भर्ती करवाकर आया है। अरे भाई इस
परीक्षा में तो पास होगा ही, किन्तु
इससे भी बड़ी इन्सानियत की परीक्षा में पास हो गया है। ऐसे होनहार सपूत के पिता
हैं आप। बधाई !
शब्दार्थ
राहगीर - मुसाफिर
आईना - दर्पण
शक्ल - चेहरा
नवनिर्माण - फिर से बनाना,
नई रचना
मेधावी - होशियार
अनुपस्थित - गैरहाज़िर
होनहार - अच्छे लक्षणोंवाला
कर्तव्य - फर्ज़
कराहना - दर्दभरी आवाज़ से चिल्लाना
बस्ता - थैला, दफ्तर (गुज.)
बरकत - लाभ, फायदा
पिक्चर - चलचित्र
बेसहारा - निःसहाय
टाँग - पैर
सपूत - लायक, पुत्र
जख़्मी - घायल
एक्सीडेन्ट - दुर्घटना
लेट (Late) - देर
से आना
इन्सानियत - मानवता
जोक - खून पीनेवाला जंतु विशेष, जळो (गुज.)
रेज़गारी - छोटे
सिक्के
हाकर - फेरियो
(गुज.)
मुहावरे
आईना बनाना - बहुत चमक लाना
रोब जमाना - अपना
प्रभाव दिखाना
नाक में दम करना - परेशान करके रखना
ટેસ્ટ આપવા માટે
0 Comments