ऐसा था
नेपोलियन
नेपोलियन जब
छोटा
लड़का
था
तभी
से
वह
सत्यवादी
था।
एक
दिन
वह
अपनी
बहन
के
साथ
आंख
मिचोली
खेल
रहा
था।
पिलाई
जाती
थी
और
नेपोलियन
उसे
ढूंढने
के
लिए
इधर
उधर
दौड़
रहा
था।
अचानक
हुआ
है
लड़की
से
टकराया।
लड़की
अमरूद
बेचने
के
लिए
जा
रही
थी।
नेपोलियन
के
टकराने
से
उसकी
टोकरी
नीचे
गिर
पड़ी।
कीचड़
होने
के
कारण
उसके
सारे
अमरुद
खराब
हो
गए।
वह
रोती
हुई
कहने लगी,
" अब महापौर
ने
क्या
जवाब
दूंगी
? "
इकाई जा कहाने लगी , " चलो , भैया हम यहां से भाग चले"
" नहीं बहन , हमारे कारण ही तो उसकी हानि हुई है " । यह कहां पर नेपोलियन ने जेब में रखे हुए 3 छोटे सिक्के उस लड़की को देकर कहा , " बहन, मेरे पास यह तीन ही सिक्के है तुम इन्हें ले लो।"
" इंटेक्स इको से क्या होगा ? मेरी मां मुझे बहुत मारेगी" , लड़की ने कहा। " अच्छा, तो तुम हमारे साथ घर चलो, हम तुम्हें अपनी मां से और पैसे दिलवा देंगे"।
इस पर ईलाइजा ने नेपोलियन से कहा , " भैया, इसे घर ले चलोगे तो मां नाराज होगी।"
नेपोलियन नहीं माना। उस लड़की को अपने साथ घर ले गया । मां को घटना की जानकारी देकर वह बोला , " मां , आप मुझे जो जेब खर्च देती है , उसमें से इस लड़की को पैसे दे दीजिए"।
" ठीक है। मैं तुम्हारी सच्चाई से खुश हूं मगर याद रखना, अब तुम्हें एक महीने तक जेब खर्च के लिए कुछ भी नहीं मिलेगा", मां ने कहा।
" ठीक है हां। नेपोलियन ने हंसते हुए कहा।
मैंने उस लड़की को दो बड़े सिक्के दिए। वह खुशी-खुशी घर लौट गई।नेपोलियन को धोखा देने की सजा तो मिली परंतु सत्य के पथ पर चलने का कारण उसे यह सजा भुगतने में अद्भुत आनंद आया। वास्तव में नेपोलियन सच्चाई के पथ पर चलने वाला इंसान था। बचपन से ही उसे खुद पर दृढ़ विश्वास था और जाट इच्छाशक्ति भी।
सच्चा दान
माल बार ( केरल ) की बात है। वहां बढ़ गया नाम के एक गांव में सभा का आयोजन किया गया। गांधी जी ने अपने भाषण में सभा में उपस्थित सभी बहनों के जेवर ओं की भीख मांगी। बहुत सी वस्तुएं भेंट में मिली। अपना भाषण समाप्त करके गांधी जी उनको नीलाम करने लगे। उसी समय कौमुदी नाम की 16 वर्ष की एक कन्या धीरे से मंच पर चढ़ आई । उसने एक हाथ की सोने की जोड़ी उतारी और उसे गांधी जी को देते हुए बोली - क्या आप मुझे अपने हस्ताक्षर देंगे ?"
गांधीजी हस्ताक्षर कर ही रहे थे कि उसने दूसरे हाथ की चूड़ी भी उतार दी। यह देखकर गांधी जी ने उसे कहा - अरे , पगली लड़की, दोनों चूड़ियां देने की जरूरत नहीं है। एक ही जोड़ी लेकर मैं तुम्हें अपने हस्ताक्षर दे दूंगा।
उसके उतरने को मोदी ने अपने गले का स्वर्ण हार उतार दिया। गांधीजी ने पूछा- तुमने अपने माता-पिता से आत्मा ले ली है ना? "
बिना कोई उत्तर दिया उसने कानों में से रत्ना जड़ित बूंदी अभी निकाल लिए। गांधीजी ने पूछा तुमने इन आभूषणों को देने के लिए अपने माता-पिता से हाथ ना ले ली है ना ?"
मुझे कुछ उत्तर देती, इससे पहले ही किसी ने कहा - उसके पिता तो यही है ना , माल पत्रों की नीलामी वही तो बोली लगाकर आपकी मदद कर रहे हैं!
हम गांधी जी ने को मोदी से कहा - तुम्हें या तो मालूम होगा कि गाने देने के बाद तुम फिर नए गहने बनवा सको कि नहीं।"
कॉमेडी ने
यह
सर
दर्द
ता
पूर्वक
स्वीकार
कर
ली।
गांधीजी
ने
हस्ताक्षर
करने
के
बाद
यह
वाक्य
लिख
दिया-
तुम्हारे
इन
आभूषणों
की
अपेक्षा
तुम्हारा
ध्यान
ही
सच्चा
आभूषण
है।
सच है,
देश
प्रेम
से
बढ़कर
कुछ
नहीं।
टिप्पणी
सत्यवादी - हमेशा
सत्य
बोलने
वाला
अदभूत - अनोखा
आंखमेंचोली
- लुका छुपी
का
खेल
अमरूद - जामफल
पथ - रास्ता
द ढ
- मजबूत
हस्ताक्षर - दस्तखत
घटना - प्रसंग
उपस्थिति - वहां
आए
हुए
मानपत्र - आदर्श
से
लिखा
पत्र
आयोजन - इंतजाम
आभूषणों - गहना
नीलामी - बोली
लगाकर
बेचना
भाषण - सभा
के
सामने
बोलना
त्याग - समर्पणा
महावरे
उल्टा चोर
कोतवाल
को
डांटे
- अपराधी द्वारा
निर्दोष
को
धमकाना
ऊंची दुकान
फीका
पकवान-
प्रसिद्धि के
अनुरूप
ना
होना
एक तो
करेला
ऊपर
से
नीम
चढ़ा-
एक
दोस्त
के
साथ
साथ
दूसरा
दोस्ती
लग
जाना
एक साड़ी
मछली
सारे
तालाब
को
गंदा
करती
है
- एक की
बुराई
के
कारण
सबकी
बदनामी
होना
कंगाली में
आटा
गीला-मुसीबत
में
और
मुसीबत
आना
कहां राजा
भोज
कहां
गंगू
तेली-दो
व्यक्तियों
की
स्थिति
में
बहुत
अंतर
होना
कोयल की
दलाली
में
हाथ
काला-
कंजूस
व्यक्ति
कष्ट
सहन
कर
लेता
है
लेकिन
पैसे
खर्च
नहीं
करता
जो गरजते
हैं
वह
बरसते
नहीं-जो
डिंग
मारते
हैं
वह
काम
नहीं
करते
नाम बड़े
और
दर्शन
छोटे
- रसीदी अधिक
किंतु
तत्व
कुछ
भी
नहीं
बोया पेड़
बबूल
का
आम
कहां
से
पाए-बुरे
कामों
का
अच्छा
फल
नहीं
मिलता
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