નમસ્કાર ,
આ પોસ્ટમાં આપ TET EXAM , STD- 6 , SEM -2 , Chapter 6 , न्याय વિષે માહિતી મેળવી શકશો. જેમાં સૌથી છેલ્લે સ્વ મૂલ્યાંકન માટે ટેસ્ટ આપેલી છે.
पुराने जमाने
में ईराक की राजधानी बगदाद में एक व्यापारी रहता था, नाम था उसका,
अली
ख्वाज़ा । व्यापार करते-करते जब उसके पास एक हजार सोने की मोहरें इकट्ठी हो गई,
तो
उसने मक्का शरीफ़ की यात्रा का निश्चय किया। चूँकि वह अकेला रहता था, उसने
अपनी जमा पूँजी अपने मित्र के यहाँ रखने का निश्चय किया। यात्रा के खर्च के लिए
उसने पाँच सौ मोहरें अलग रख लीं। फिर एक घड़े में बची हुई मोहरें डालकर तेल भर
दिया। अली ख्वाजा पड़ोस में अपने मित्र वाजिद के घर गया। उसको अपनी यात्रा के बारे
में बताया और कहा, 'यह तेल का घड़ा मैं आपके घर रखकर जाना चाहता हूँ। मक्का से लौटकर ले
लूँगा।' वाजिद ने अपने तहखाने की चाबी उसे देते हुए कहा कि, "आप
अपना घड़ा तहखाने में रख आइए और जब आप लौटें तो उसी स्थान से ले लीजिए।" अली
ख्वाजा घड़ा रखकर यात्रा के लिए निकल गया।
एक दिन वाज़िद
के घर दावत थी। तरह-तरह के पकवान बनाते हुए तेल खत्म हो गया। रात का समय था। वाजिद
की बीवी अपना सिर खुजलाने लगी। तभी उसे अली ख्वाजा के तेल के घड़े की याद आई। उसने
वाजिद से कहा, 'आप तहखाने में रखे तेल के घड़े से थोड़ा " तेल निकाल लाइए। इस
समय बाज़ार तो बंद हैं। कल सुबह बाज़ार से नया तेल लाकर घड़े में भर देंगे। ख्वाज़ा
आज रात ही आकर तो तेल नहीं माँगेंगे।"बीवी की बात सुनकर वाज़िद तहखाने में
गया। जब घड़े की सील खोलकर तेल निकालने लगा तब घड़े में से सिक्कों की आवाज़ आई।
उसे लगा कि घड़े में तेल के नीचे कुछ है। इसलिए उसने दूसरे बर्तन
में सारा तेल
निकाल लिया। उसने देखा कि घड़े में तो पाँच सौ सोने की मोहरें थीं। उसने उन मोहरों
को अपनी तिजोरी में छिपाकर रख दिया और तेल लाकर बीवी को दे दिया। अगले दिन उसने
बाजार से नया तेल लेकर घड़े में भर दिया। उसे वैसे ही सीलबंद कर दिया जैसे कि
ख्वाजा अली ने किया था। कुछ दिनों के बाद ख्वाजा मक्का की
यात्रा से वापस आया। घर में अपना सामान रखकर वह सीधा वाजिद के घर गया और अपनी
यात्रा की सारी बातें बताईं। फिर तेल का घड़ा लेकर वह घर आ गया। जब उसने घड़े का
तेल निकालकर देखा तो उसके पैरों तले जमीन ही खिसक गई। वह सिर पकड़ कर बैठ गया,
क्योंकि
घड़े में एक भी सोने की मोहर नहीं थी। वह सोचने लगा, अब क्या किया
जाए?
वह उलटे पाँव
वाजिद के घर गया और अपनी मोहरें माँगने लगा। वाजिद ने कहा कि, "सीलबंद
तेल का घड़ा आपको उसी स्थान से मिला जहाँ आप रखकर गए थे। मैंने तो उसे हाथ भी नहीं
लगाया। मैं कैसे मान लूँ कि उसमें सोने की मोहरें थीं।" दोनों मित्रों में
कहा-सुनी होने लगी। दोनों का झगड़ा सुनकर आस- पास के लोग इकट्ठे हो गए। उन्होंने
जब झगड़े को बढ़ते हुए देखा तो ख्वाजा से कहा कि, "आप काजी की अदालत
में जाइए। वह ही आपके झगड़े को मिटा सकता है।"
ख्वाजा ने काज़ी
की अदालत में अपनी बात रखी परंतु पक्के सबूतों के अभाव में उसे वहाँ से निराश
लौटना पड़ा। तब उसने बगदाद के खलीफा के यहाँ अपील की और न्याय माँगा। खलीफा ने
उसकी अपील स्वीकार कर ली। खलीफा ने सारे मामले
पर विचार करने के लिए कुछ समय चाहा। एक सप्ताह बाद का समय सुनवाई के लिए दिया गया।
ख्वाजा और वाजिद का किस्सा अब प्रख्यात हो गया था। खलाफ़ा एक दिन अपना भेष बदलकर शहर में घूम रहे थे। तभी उन्होंने कुछ
लड़कों को न्यायालय का खेल खेलते हुए देखा। वह छिपकर उनका खेल देखने लगे। उन्हें
लगा कि जो लड़का न्यायाधीश बना है, बड़ा समझदार है। वह जिस तरह न्याय कर
रहा है, बिलकुल
ठीक है। इसलिए उन्होंने उस लड़के को
अपने पास बुलाया और उसका नाम पूछा। लड़के ने कहा, “मेरा नाम हसन
है।" खलीफ़ा ने कहा, "मैंने तुम्हारा खेल देखा। तुम बहुत
समझदार हो । कल हमारे दरबार में आना।"
अगले दिन खलीफ़ा
के दरबार में अली ख्वाजा, वाजिद और हसन उपस्थित हुए। खलीफा ने
हसन से कहा कि, "तुम इन दोनों के झगड़े का किस्सा सुनो और बताओ कि इनमें से कौन सच
बोल रहा है?"हसन ने दोनों की बातें ध्यान से सुनीं। फिर उसने दो तेलियों को
बुलवाया। थोड़ी देर में दो तेली आ गए। हसन ने उनसे कहा, "आप
इस घड़े के तेल की जाँच कीजिए और बताइए, इस घड़े में तेल कितना
पुराना है?" दोनों
तेलियों ने बारी-बारी से तेल को देखा, सूँघा और चखा। फिर अपना निर्णय दिया।
“घड़े का तेल दो महीने पुराना लगता है, इससे
ज्यादा नहीं", वे बोले ।"तेलियों की बात सुनकर वाजिद तो घबरा गया। अली ख्वाजा
खुश होकर बोल पड़ा, "हुजूर, मैं तो छः महीने
पहले मक्का की यात्रा करने गया था। तभी मैंने तेल खरीदा था।" तेलियों और अली
ख्वाजा की बात सुनकर सब को वास्तविकता का ज्ञान हो गया। खलीफ़ा को न्याय के लिए
सबूत मिल गया था। खलीफ़ा ने हसन को धन्यवाद दिया और वाजिद से कहा कि,
"आपने अली ख्वाजा के घड़े से तेल और मोहरें निकाली हैं। आप उन्हें
वापिस कीजिए और चोरी और विश्वासघात के अपराध की सजा भुगतिए।" खलिफा ने हसन को
बहुत सारा पुरस्कार दिया।
खलीफ़ा के दरबार
में उपस्थित सभी लोगों ने हसन की सूझ-बूझ और न्याय की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
शब्दार्थ
अपील-
निवेदन
अभाव -
कमी
जाँच - तपास
तहखाना - जमीन
के नीचे बना कमरा
तेली - तेल निकालनेवाला
पुरस्कार - इनाम
भूरि-भूरि - खूब
सारी
मोहर - सिक्का
वास्तविकता - सच्चाई
विश्वासघात - धोखा
देना
सबूत -
किसी बात को सिद्ध करने का प्रमाण
सजा भोगना - दंड भोगना
सूज–बूज - समजदारी
मुहावरे
सिर शुजलाना - सोचना
पैरो तले जमीन खिसक
जाना - आघात लगना
कहा- सुनी होना - बांतो की लड़ाई होना
सिर पकड़कर बैठ
जाना - हताश होना
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